Description
धर्म में तू-तू मैं-मैं से झगड़े होते हैं। इसे दूर करने के लिए यह निष्पक्षपाती त्रिमंत्र है। इस त्रिमंत्र का मूल अर्थ यदि समझे तो उनका किसी भी व्यक्ति या संप्रदाय या पंथ से कोई संबंध नहीं है। आत्मज्ञानी, केवलज्ञानी और निर्वाण प्राप्त करके मोक्षगति प्राप्त करनेवाले उच्च, जागृत आत्माओं को नमस्कार है। जिन्हें नमस्कार करके संसारी विघ्न दूर होते हैं, अडचनों में शांति रहती है और मोक्ष का लक्ष्य बैठना शुरू हो जाता है।
आत्मज्ञानी परम पूज्य दादा भगवान ने निष्पक्षपाती त्रिमंत्र प्रदान किया है। इसे सुबह-शाम ५-५ बार उपयोगपूर्वक बोलने को कहा है। इससे सांसारिक कार्य शांतिपूर्वक संपन्न होते हैं। ज़्यादा अडचनों की स्थित में घंटा-घंटाभर बोलें तोसूली का घाव सुई से टल जाएगा।
निष्पक्षपाती त्रिमंत्र का शब्दार्थ, भावार्थ और किस प्रकार यहाँ हितकारी हैं, इसका खुलासा दादाश्री ने इस पुस्तक में दिया है।