Description
साथ ही, उन गुणों का उपयोग करके सांसारिक परिस्थितियों में वीतरागता कैसे रखी जा सकती है—इस संबंध में जो बातें सिद्ध स्तुति अध्याय में हमें प्राप्त होती हैं—तथा लौकिक मान्यताओं के सामने वास्तविकता क्या है, और मान्यताओं की विभिन्न अवस्थाओं में इन गुण-स्वभावों का उपयोग कैसे किया जाए—इन सबका विस्तार से वर्णन है।
इसके अतिरिक्त, ज्ञानी पुरुष में ये गुण-स्वभाव यथार्थ रूप से कैसे प्रकट होते हैं, और उससे आगे तीर्थंकर भगवान की सर्वोच्च अवस्था में यह सब कैसे वर्तता होगा—ये सभी बातें दादाश्री के श्रीमुख से निकली हुई हैं और वे सब यहाँ समाहित की गई हैं।